
डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी : अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी कवि
राम बाण
राम बाण🏹 - राम धैर्य हैं (16-14 मात्राभार)
राम धैर्य है सत्य प्रेम के,
राम मधुर रस बोली है।
राम राम में रम जाते जो,
राम लला की टोली है।
राम नेक हैं राम एक है,
राम बीज समरसता का,
राम बीज को रोपो दिल में,
राम मर्ज की गोली है।
राम मंत्र है आस्था का उस,
जिह्वा में बसे राम है।
राम रतन अनमोल जगत के,
पतित के पावन राम है।
राम कर्म है सेवा करना,
सेवा कर्म ही राम है।
राम पुण्य का सफल तीर्थ है,
राम मुक्ति का धाम है।
राम सजीवन बुट्टी जिसमें,
जीवन घुट्टी घोली है।
राम सहारे दीन दुखी के,
जिनके हिय में बसते है।
राम अन्न का रुप संवारे,
भूख रूप में बसते है।
राम मन की क्षुधा मिटाते,
रोम रोम में बसते हैं।
राम सफलता की कुंजी है,
राम दिलों की खोली है।
राम सत्य का मंदिर है,
राम ही वेद पुरान है।
राम रमे हैं हर जन-जन में,
राम ही सत्य विधान है।
राम प्रतीक हर धर्म कहता,
राम सनातनी ज्ञान है।
राम धर्म है राम कर्म है,
राम ही जन कल्यान है।
राम दयालु राम कृपालु,
राम मनुज की झोली है।
राम धैर्य है सत्य प्रेम के,
राम मधुर रस बोली है।
राम बाण
राम बाण
रस चाखन मात्रा भार (16-12)
चमचे निश्छल जगत प्रेम के,
शुभकर बात बनायी।
मिले मधुर रस रस चाखन को,
जिव्हा चाख चखायी।
समदर्शी सद्भाव जगाए,
सपनों के बागों में।
जन्नत हूरें दिखा रहे है।
धर्मी कौमी भाई।।
खाने को भर पेट मिले तो,
मौका कभी न छोड़ें।
लल्लो चप्पो करना जाने,
कितनों के घर तोड़े।
खानपान की चौपाटी में,
खाते खूब मलाई।
आलू से सोना बना नहीं
भेजा चाट बनायी।
पुलकित होते राम धाम के,
संत समागम करते।
पीड़ा के हर बाम लगाकर.
दर्द सभी के हरते।
हर हर बोलो बोल रहे हैं,
बोली में दम भरते।
अपना दम ही लगा रहे हैं,
पाट रहे हैं खायी।
अपने चमचे साथ रहें तो,
सेवा लो सरकारी।
गांव गांव में चलना होगा,
सेना की तकवारी।
जात-पात में छांट-छांट कर,
करना है तकरारी।
तकरारी तकवारी में तुमने,
लुटिया खूब डुबायी।
समझौते की डील नई है,
गाड़ी वजन बढाये।
एक साथ मिलकर बैठे,
गाड़ी चला न पाये।
दूल्हा बने सभी बाराती,
दुल्हन रिझा न पाये।
बिन फेरे सँग तेरे रहकर,
मांग रहे बिदायी।
मिले साथ तो हाथ मिलाते,
जगधर लल्लू मिलकर।
हाथ जोड़ कर हमें रिझाते,
कहते उनको विषधर।
बोली की मर्यादा भूले,
सोच बनी है घर घर।
सोच बदलने निकल पड़े हैं,
चमचे संग सहायी।
राम बाण
राम बाण🏹प्रीत दिखाते (मात्रा भार 16-14)
गर्मी में कुछ प्रीत दिखाते,
रीत बनाते पावन के।
जब जब मन में प्रीत जगेगा,
गीत रचेंगे सावन के।।
सावन के बरसाती मेंडक,
कैसे शोर मचाते हैं।
टर्र-टर्र मजबूत इरादे,
वोट- वोट चिल्लाते है।
बरसाती नाले से इनके,
वादे हैं मन भावन के।।
कुर्सी के गठबंधन देखो,
अवसर अपना ताक रहे।
मौके की हर गांठ लगाये,
अपना कद है नाप रहे।
ताक झाक के गठबंधन में,
अवसर लोक लुभावन के।।
अवसरवादी सेंक रहें है,
जी लोकतंत्र की रोटी।
चमचे उनके देख रहे हैं ,
नीयत है किसकी खोटी।
बंदर रोटी छीन लिया तो,
दोष रचेंगे शासन के।।
मन में लड्डू फूट रहे हैं,
अब प्रीत उन्हीं से होगी।
कुर्सी उनकी जोगन होगी,
जी ! वे कुर्सी के जोगी।।
मन के सपने आप सुहाये,
जीत दिखाये तारन के।।
हार जीत के सपने उनके,
हार गले का हार बनी।
अपनों की थी सौदेबाजी,
जो दल्लों की चाल बनी।।
दल्ले चमचे राज गजब के,
राज रखे हैं रस चाखन के।।
राम तुम्हारे गीत लिखेंगे,
राम राज के भाव लिए।
काव्य सुधा के मद में झूमें,
भावों में सद्भाव लिए।
गीतों के सुरमयी तराने,
राग रचेंगे गायन के।
राम बाण🏹 क्रीम लगी दीवारें (मात्रा भार 16-14)
ऐसा रूप सँवरना उनका।
दर्पण सम्मुख इठलाना।।
दर्पण की निर्मलता माने।
दूर दूर तक झुठलाना।।
क्रीम लगी दीवारें खुद ही।
मुँह में रौनक बता रहीं।।
इत्र बाग की खुशबू देकर।
मन बगिया को लुभा रहीं।
सपने के झूले हैं सुखमय।
अपने मन को बहलाना।।
भ्रम की बेलायें फैंली हैं।
आशा के बादल गहरे।।
दोष नजर का कौन बताये।
शंका के लगते पहरे।।
नजरों का बढ चढ़कर हिस्सा।
कमसिन लगता झुँझलाना।।
घर में रहकर भूल गये थे।
पर्दे में कैसे रहना।
बेपर्दे में रहकर जाना।
चेहरा ढंकते रहना।।
अंकुश के पर्दे में घायल।
जख्मों को फिर सहलाना।।
सपनों की है हेरा फेरी।
दुखड़े हैं जज्बातों के।।
इच्छायें बुनियादी करने।
खंजर हैं उन्मादों के।।
राम कहें मन रूप सँवारो।
जीवन को है सिखलाना।।
राम बाण
28-APR-25
राम बाण🏹 अपनी अपनी राम कहानी (मात्रा भार 16-16)
अपनी अपनी राम कहानी,
करते रहते हैं नादानी।
सच्चे सेवक बनकर आते,
वादे उनकी बोल जुबानी।।
कौन बुरे हैं कौन भले हैं,
कौन किसी के पड़े गले हैं।
कोई उनको कहते झूठे,
कोई सच्चे बने अनूठे।
कैसे करते हैं शैतानी।।
लुक्का छिप्पी खेल सुहाता,
अपनो से ही भेद छिपाता।
पोल खोल के सत्ता पाने,
मांग करे है भत्ता पाने।
सत्ता भत्ता की है बानी।।
बँद कमरे की बात निराली,
कुर्सी पाने जात निकाली।
किसने किसकी बात छिपाया,
दो पैरों के है चौपाया।
पग पग की है अलग निशानी।
इसको छोड़े उसको जोड़े,
किसने किससे रिश्ते तोड़े।
रिश्ते उनसे बना न पाये,
दाँव पेंच भी लगा न पाये।
बिना लड़े कुश्ती नूरानी।।
जहर हवा में घोल रहे हैं,
चोर-चोर वे बोल रहे हैं।
प्रदूषण चारों ओर फैला,
चुनौतियों का बना झमेला।
राम कहें ये कोर्ट दीवानी।
अपनी अपनी राम कहानी।
करते रहते है नादानी।।
राम बाण
28-APR-25
राम बाण🏹 दारू में सब्सिडी मिले (मात्रा भार 13-11)
पेट्रोल मंहगा हुआ,मंहगी हुई दाल।
गंजे बाबा तेल से बढा रहे हैं बाल।।
प्याज नहीं है हाट में,मौलवी परेशान।
अनशन करने बैठते,सड़क में तँबू तान।
आटा गीला हो गया, चच्ची पीटे थाल।।
दद्दा धमकी दे रहे, करते मन की बात।
तालमेल करने लगे,देख रहे जज्बात।
गठबंधन करने लगे,दलते अपनी दाल।।
दारु में दम दिखा रहे,नशा करे उन्माद।
भूल चूक के नाम से,कोर्ट कराये वाद।
दारू सरकारी मिले, करने लगे बवाल।।
सब्सिडी दारु में मिले, रखते अपनी मांग।
अपने मतलब के लिए, खींच रहें हैं टाँग।
सरकार हमें छूट दे, लगा रहे चौपाल।।
लोकतंत्र के नाम से,चला रहे दरबार।
अंधे खायें रेबड़ी,लौन बना व्यापार।।
कर्जा देते बैंक है,माफ करे सरकार।।
अच्छे दिन की आस में, होता रहा विकास।
रिश्तों के अनुबंध में, सपनों का विश्वास।
मन मंथन करने लगा, मन का मायाजाल।।
राम बाण
28-APR-25
राम बाण🏹 कुत्ते भौंक रहे गलियारे (मात्रा भार 16-16)
कुत्ते भौंक रहे गलियारे।
खिसियानी बिल्ली चिंघारे।।
एकता के पाठ पढ़ायें।
टट्टू बनते आप सहारे।।
गठबंधन करने को निकले।
गिरगिट रंग बदलने निकले.।।
कुर्सी पाने निकले सारे।
बोल रहे हैं बिना बिचारे।
वे घर के न घाट के होते।
तलुआ चाट चाट के रोते।
गधे अलाप रहे हैं देखो।
चारा माँग रहे हैं देखो।।
उनका चारा तुमने खाया।
दो पैरों के हैं चौपाया।।
चौपाये ये वक्त दुखारे।
उनके सेवक आप सहारे।।
आस्तीन के साँप हैं पलते।
आप ही आग में हैं जलते।।
सदनी टॉमी राग अलापे।
सियार सुन्नी करें विलापे।।
उल्लू करते रोज धमाके।
सबके अपने बने इलाके।।
गली के कुत्ते शेर मारे।
फिरते थे जो मारे मारे।।
चूहा बिल्ली खेल रचाते।
बिना गीत के नाच नचाते।।
चोर उचक्के मिलकर नाचों।
कथा कहानी गढ़कर बाँचो।।
सत्ता सुख के गलियारों में।
धर्म जिहादी हुंकारों में।।
गौ माता के लगते नारे।
वंदेमातरम पर बिचारे।।
बातें सुनलो राम हमारी।
छूट माँग लो तुम सरकारी।।
छूट माँग की ये परिभाषा।
हरती पीड़ा मिलती आशा।।
हक माँग और मिलते वादे।
लोकतंत्र के नेक इरादे।।
राम राम तुम जप लो प्यारे।
पीड़ा हरते सबके सारे।।
राम बाण
28-APR-25
दंभी दानव दहक रहे हैं,
दंभी दानव दहक रहे हैं,
दावानल घातों में।
दलित फलित दाग रहे हैं,
दल झंझावातों में।
दूर दर्श की गद्दारी भी,
दलती रहती दालें।
दर्दहर दल में रचेंगे ,
देश द्रोह की चालें।
राजनीति में जन्मे दानव,
राम बाण🏹 दिल देती हूँ कहती मुझसे (मात्रा भार 16-16)
बातें उनकी प्यारी लगती,
चाहत सबसे न्यारी लगती।
दिल देती हूँ कहती मुझसे,
योजना सरकारी लगती।।
रात रात को जाग रहे हैं,
नेट चैट में भाग रहे हैं।
हाय हलो के कमेंट करती,
दिल में जैसे करेंट करती।
आई लव यू बम छोड़ दिया,
दिल के ताले जी जोड़ दिया।
कहाँ कहाँ दिल जारी करती,
कितनों की बीमारी लगती।
दिल देना भला क्या खेल है,
किडनी हमारी जी फेल है।
देना है तो किडनी दे दो,
तुमको अच्छी यारी लगती।
सुनकर गायब हो गई जालम,
बना रही थी हमको बालम।
दिल का खाली पैक कराकर,
गुप्त योजना भारी लगती।।
राम बाण🏹 ऐसी भी क्या होली है (मात्रा भार 16-14)
मिलकर साथ नहीं खेले जो,
ऐसी भी क्या होली है।
शब्दों के क्या बाण चलाये,
दिल में लगती गोली है।
संसद की है तान निराली,
अपनी राग सुनाते हैं।
मल्लयुद्ध की शैली इनकी,
जूते लात चलाते हैं।
इनके नेता इनको भाये,
उनको लाज सिखाते हैं।
संसद की मर्यादा भूले,
फूहड़ता की बोली है।
समाचार के वाचक कैसे,
बैठक दिन भर करते हैं।
चर्चा परिचर्चा में सारे,
मिलकर ही दम भरते हैं।
उनके दम पर दंभ बताते,
लड़कर कटते मरते हैं।
दिल्ली के दल्लों ने दिल से,
खूब जलाई होली है।
लोकतंत्र कें गलियारें में,
पलते राज दुलारे हैं।
वंशवाद से राजतंत्र तक,
सबके वारे न्यारे हैं।
देश चलाने कहते फिरते,
कितने ख्वाब सँवारे है।
आप सहारे लिए दलों से,
उसकी अपनी टोली है।
सड़कों की धूलों में देखो,
कल्प बाग के फूल खिले।
हसरत भरे इरादों को भी,
गठबंधन के धूल मिले।
अवसरवादी समझौतों ने,
सेवामयी उसूल चले।
वोट बैंक की सेवा पूंजी,
लोकतंत्र की झोली है।
राम रंगे अपने रंग में,
राम बाण की बोली है।।
राम बाण🏹 कलम चलाना भूल गये (मात्रा भार 16-14)
जीवन के कोरे पन्नों में,
कलम चलाना भूल गये।
सीधे सच्चे हाथों को हम,
देश थमाना भूल गये।
सोच बदलने निकले थे वे,
देश हमारा बांट दिए।
मंदिर मस्जिद के नामों पर,
कितनी लाशें पाट दिए।
सत्ता सौंपे जिन हाथों में,
उनने हमको बाँट दिए।
जात पात के झगड़ों में हम,
देश पुराना भूल गये।
साहित्य अपना चोरी हुआ,
संस्कृति भी गुमनाम हुई।
जयचंद चोला लिबासों से,
भारत मां बदनाम हुई।
अंग्रेजों से मुक्त हुए तो,
हिन्दी यहाँ गुलाम हुई।
अंग्रेजी ही पढ़ पढकर हम,
वेद पढ़ाना भूल गये।
मिली सभ्यता उनकी तो,
कपड़े इनके छोटे थे।
चेहरा उनका साफ मगर,
नीयत के वे खोटे थे।
पतली उनकी काया थी पर,
बुद्धि के वे मोटे थे।
अभिनय के हर पहलू का हम,
पाठ पढ़ाना भूल गये।
गानों की फूहड़ता में वे,
नाच नाच कर गाते हैं।
पैंट फटा है जर्रो में,
अंग अंग दिखलाते हैं।
नैतिकता का बोध नहीं है,
नैतिकता सिखलाते है।
बेसुर गीतों के सुर में हम,
सुर लगाना भूल गये।
राम बाण 🏹 बात निराली (मात्रा भार 16-12)
आदर्शों की बात निराली,
लगा रहे हैं चक्कर।
अपने ही अपनों को कैसे,
चुभा रहे हैं नश्तर।
बाबूजी बिल पास कराने,
घूम रहे दफ्तर में।
इसके चक्कर उसके चक्कर,
देख रहे चक्कर में।
चक्कर घिन्नी बनकर आते,
फिर जाते दफ्तर में।
पेंशन पाने के चक्कर में,
हाल बड़े हैं बदतर।
आशाओं की उम्मीदों ने,
सपनों के थाल रखे।
अपनों से अपने अलग हुए,
अपनों ने चाल रखे।
घर की सूनी आँखों ने भी,
सपनों को पाल रखे।
इस भूली बिसरी दुनिया में,
सपनों के हैं मंजर।
खिला चेहरा बेटी का तो।
सारे गम भूल गए।
प्यारी सी घुड़की खाकर ये,
सपनों में झूल गए।
माँ जैसी है प्यारी बातें,
यही सोच फूल गए।
माँ की सूरत जैसा मुखड़ा,
जरा नहीं है अंतर।
बेटी उनकी हुई सयानी,
चिंता ये सता रही।
बीती बातें चश्मा कहता,
आँखे दुख जता रही।
पैरों की टूटी चप्पल भी,
राज सभी बता रही।
सड़कें सूनी शर्मिंदा हैं,
दुखी राह के पत्थर।
नेता उनसे जुगत लगाते,
ढाँढस देते रहते।
मैं कहता हूँ देखूँगा कह,
डींगे भरते रहते।
लेट लतीफी को बदलेंगे,
बातें करते रहते।
दफ्तर के चक्कर से छूटे,
नेता के हैं चक्कर।।
राम बाण🏹 ये धरती का आँचल (मात्रा भार 12-10)
ये धरती का आँचल,
अंबर का साया।
श्रृष्टि ने इन्हें कैसा,
सुँदर है बनाया।।
ये नदियाँ है बहती,
है कल-कल अविचल।
हमको ये कहती हैं,
बढ़े चल बढ़े चल।
अपने ही आँचल में,
सब कुछ है सहती।
नहीं भेद ये रखती,
जरा कुछ न कहती।
सहनशीलता तुमको,
ये कौन सिखाया।।
ये पेड़ों को देखो,
अडिग से खड़े हैं।
जीवन के पथ में,
अकेले लड़े हैं।
हमें वायु देते ये,
हमें प्राण देते।
हमें कर्मफल का ये,
सदा ज्ञान देते।
सबको ये देते हैं,
धूप और छाया।।
सूरज की किरणें हैं,
जीवन की आशा।
मानो ये हरती हैं,
सभी की निराशा।
नभ के ये तारे हैं,
लगते हैं प्यारे।
ये चादर में जैसे,
पिरोये सितारे।
चमक ये हमेशा,
कहां से बनाया।।
राम बाण🏹 दुनिया के अंदाज निराले (मात्रा भार 16-16)
दुनिया के अंदाज निराले।
चल बेटा किस्मत अजमाले।।
ऊपर नीचे नीचे ऊपर।
उछल कूद कर धूम मचाले।।
अपनी कुर्सी तुझे दिया था।
पिता दायित्व निभा दिया था।
चाचा बाबा साथ नहीं है।
मौला जी का साथ सही है।।
दूजे से तू हाथ मिला ले।।
कुर्सी प्रताडित सदा रहता।
जातपात से दम है भरता।
सबके झगड़े संसद जैसे।
सुलह न होए ऐसे वैसे।।
संसद में भी ससुरे साले।।
सबकी मांगे होती ऐसे।
ज्यों पेड़ों में लगते पैसे।।
बिना बात के बने बतंगे।
होते रहते सदा अड़ंगे।।
मिले वोट तो नोट छपा ले।।
जनता भी अब सुधर गई है।
फ्री पाने में बिगड़ गई है।
मेंडकी लाल ढंग बदलते।
गिरगिट जैसे रंग बदलते।
अपने रंग में उन्हें रंगा ले।।
राशन बेचे बांटे भाषन।
उछल कूद से कर ले आसन।
चंदा लेना ही धर्म बना।
फंदा कसना तू कर्म बना।
वादों के फिर जाल बना ले।।
छुट्टे भैया नेता बनते।
मिलता मंच सरपंच बनते।।
लोकतंत्र की यह परिभाषा।
भूख मंत्र की है अभिलाषा।।
भूखे तन में उन्हें नचा ले।।
सेल्फी लेकर पोष्ट तू डाल।
लाईक पर फिर करो सवाल।
अनचाहे से कुछ फ्रेंड बना।
स्टाईल के नये ट्रेंड बना।
अच्छे फ्रैंड के ग्रुप बना ले ।।
स्टंट बाईक में किया करो।
थोड़ी थोड़ी बस पिया करो।
पीने में कुछ और मिला ले।
राम बाण🏹 चांद सितारे हमने देखे। (मात्रा भार 16-16)
चांद सितारे हमने देखे।
खूब नजारे हमने देखे।
देश पकायें ख्याली रोटी।
नल से गायब खाली टोंटी।
भूख गुजारे हमने देखे।
खूब नजारे हमने देखे।
देख तरक्की जलना उनका।
तिल-तिल कर के मरना उनका।
खूब कमाये दौलत तो क्या।
चैंन गँवायें शोहरत तो क्या।
फूट दरारें हमने देखे।
खूब नजारे हमने देखे।।
बैंक दिलाये कर्जा ऐसा।
ऊँचे पद का दर्जा जैसा।
भ्रष्ट दिखाये अपना जौहर।
सत्ता उनका अपना शौहर।
कौन हमारे हमने देखे।
खूब नजारे हमने देखे।।
देश पनौती झेले जनता।
बचपन में ही पनपन पलता।
कहीं बोल के कहीं दुखारे।
बड़बोलों के बने सहारे।
राज दुलारे हमने देखे।
चांद सितारे हमने देखे।।
सैल्फी लेकर जान गँवाये।
बिन कारण ही मौत बुलाये।
सपनों में क्यों जीती दुनियाँ।
मद में ज्यों ज्यों पीती दुनिया।
ख्वाब तुम्हारे हमने देखे।
खूब नजारे हमने देखे।।
राम बाण🏹 बदल रहा है देश हमारा (मात्रा भार 16-16)
बदल रहा है देश हमारा।
बदला बदली का है नारा।
बदले बदले रुप हैं बदले।
बदला बदला है जग सारा।।
भैया किस्मत बदल रहे हैं।
चोर उनके बगल रहे हैं।
अगल बगल वे झांक रहे हैं।
अपना मौका ताक रहे हैं।
कहकर चौकीदार पुकारा।।
आँख मिचौली उनको भाती।
संसद उनसे आँख लड़ाती।
सत्ता सुख की भूख बढ़ाने।
चमचों के सँग युद्ध कराने।
कितने भूत भविष्य सँवारा।।
अपना कभी न पाठ पढें हैं।
सत्ता पाने पांव पड़े हैं।
मर्यादा के बोल सिखाने।
गुरुकुल में कुछ पाठ पढ़ाने।
अभिव्यक्ति का देते नारा।।
सत्य वचन के बोल सजाते।
अर्थ उपार्जन थाल सजाते।
भक्त खड़े दम जोर लगाने।
पंडित बनकर तिलक लगाने।
मंदिर में करते जयकारा.।।
दर्द दवा को तुम उपजाते।
आव हवा हमको बतलाते।
राज धर्म की बात सिखाने।
लोकतंत्र के दांव लगाने।
भक्ति भाव की बहती धारा।।
पाप पुण्य का कर्म बताने।
धर्म आड़ का फर्ज निभाने।
टोपी पहने घूम रहे हैं।
चमचे सँग सँग झूम रहे हैं।
राम कहें ये वक्त दुखारा।।
राम बाण🏹 बदले हैं अंदाज (मात्रा भार 13-11)
चमचे भी हैरान हैं,
बदले हैं सरताज।
बदला बदली के लिए,
बदले हैं अंदाज।।
बदल लिए हैं भेष को,
बदल रहे हैं देश।
बदले बदले हो गये,
बदल गये हैं केश।।
बदला मुखड़ा क्रीम से,
बदल गये हैं दाग़।
पान पीक सा होंठ में,
टेसू बदले झाग।।
काया को संवारते,
बदले नीम हकीम।
छाया देती धूप में,
ऐसी उनकी क्रीम।।
चमचे फैशन क्रीम से,
बदले हैं सद्भाव।
चमचे बेचे ताजगी,
बदल रहे हैं भाव।।
चमचे बदला ले रहे,
देख बगल को ताक।
चमचे बगला भक्त बन,
बदले अपनी धाक।।
बदली है सरकार तों,
बदले सारे काम।
बदली करने के लिए,
चमचे लेते दाम।।
बदला लेने के लिए,
चमचे करते केस।
बदल गये जो केस थे,
नये बने हैं केस।।
फेर बदल अंदर हुई,
अंदर की थी बात।
भीतर जैसी घात थी,
बदली रातों रात।।
राम बाण के वार से,
बदल रहा है देश।
बिन कटार की धार से,
बदले बदले भेष।।
राम बाण🏹 बनना होगा राम हमें (मात्रा भार 16-14)
अब लाज बचाने बहनों की,
बनना है घनश्याम हमें।
सत्य धर्म का पालन करने,
बनना होगा राम हमें।।
मानवता नि:स्तब्ध हुई हैं,
दानवता को पाल रखे।
विषय वस्तु का बोध नहीं है,
शब्दों के जंजाल रखे।
पीड़ा के कुछ रोग बढ़ाकर,
लगा रहे हैं बाम हमें।
गली सड़क में चलना मुश्किल,
बेटी घर में कैद रहे।
बेटा बेटी में फर्क बताकर,
जनम - जनम से भेद रहे।
भेद बड़े है सोच संकुचित,
देना हैं अंजाम हमें।।
चमचे हमको जगा रहे है,
घटना के घट जाने से।
कैंडिल मार्च लिए सड़कों पर,
सड़कों में अनजाने से।
अलख दीया जलाने हमको,
करना है कुछ काम हमें।।
धर्मवीर सड़कों में आकर,
चकाजाम है करा रहे।
मौला कौमी आग लगाकर,
धर्म धुनी है रमा रहे।
आशाओं की दुनिया छोड़ों,
बनना है बलधाम हमें।।
माँ की ममता भी रोती है,
उम्मीदों के क्रंदन हैं।
किलकारी अब सिसक रही है,
जंजीरों के बंधन है।
नैतिकता को लाने हमको,
करना है संग्राम हमें।
राम बाण 🏹 दिया जले (मात्रा भार 14-14)
किसका किसका जिया जले।
दिया जले जी दिया जले।।
दाल किसी की नहीं गले।
सरयू तट में दिया जले।।
राम लला का धाम सजा।
चकाचौंध सा जाम लगा।।
अपने तो हैं राम प्रिये।
राम प्रिये जी राम प्रिये।।
कब्जे की क्या पैठ बढ़ी।
दल्लों की क्या भेंट चढ़ी।।
दाँव पेंच के केस चले।
कोर्ट कचहरी जिया जले।।
मंदिर मूरत अच्छी थी।
कथा कहानी सच्ची थी।।
दूर दरश की बात खले।
देख पड़ोसन जिया जले।
तिल-तिल का ताड़ बने।
राई का न पहाड़ बने।।
धरम थोपते करम जले।
समरसता का दिया जले।।
अपना कह किस्से गढ़ते।
राम दिलों दिल में बसते।।
कौम कलह की चाल चले।
सरयूतट पर दिया जले।।
राम बाण 🏹 चले दौर पीते पिलाते यहाँ पर 122 122 122 122
चले दौर पीते पिलाते यहाँ पर।
उन्हें तंत्र ठेका दिलाते यहाँ पर।।
उन्हें खानदानी सहायक मिलेंगे।
सही भक्त को ये विनायक मिलेंगे।
उन्हें सब तरीके सिखाते यहाँ पर।।
सही तार अपने जुड़ाने लगे हैं।
खुले तार फिर से लगाने लगे है।
तरन हार हमको बताते यहाँ पर।।
बड़े नोट उनको थमाकर चले हैं।
हमें आप छुट्टे बताकर चले हैं।
पड़े खोट सिक्का चलाते यहां पर।।
लगे सैल बाजार भारी कमी में।
बने लूट कारण उधारी जमीं में।
खुली छूट कीमत बताते यहाँ पर।।
यहाँ एक पर एक फ्री है मिलेगा।
बिना दाम के तो नहीं कुछ मिलेगा।
प्रलोभन दुकानें सजाते यहां पर।।
लगे बाल झढ़ने हमें फोन आते।
दवा युक्त सैम्पू लगाना बताते।
गँजा मुक्त आइल लगाते यहां पर।।
हुई हद बड़ी जब हमें फोन आया।
करो चेट खुलके हमें जब बताया।
हमें चेट करना सिखाते यहां पर।।
राम बाण🏹 इच्छाओं के बादल (मात्रा भार 16-14)
मन के मौला मन के मौजी,
मन में आग लगाये हैं।
मधुर-मधुर सी मुस्कान लिये,
मन में ख्वाब सजाये हैं।
इच्छाओं के बादल उमड़े,
घुमड़-घुमड़ के गरज रहे।
लोकतंत्र के प्यादे घर में,
धमकी देकर धमक रहे।
सेना पर पत्थर फेंके तो,
भटके राही पाये है।
कहीं सोच है कहीं लोच है,
कहीं सड़क ये रोक रहे।
किसके किस्से गढ-गढकर,
कुत्ते कौमी भौंक रहे।
आशाओं के पानी उतरे,
कितने ख्वाब बहाये हैं।
सेवा की सरकार निराली,
मुफ्त लुत्फ है लुटा रही।
हसीन सपने सजा-सजाकर,
गुप्त में दाल पका रही।
अम्मी चाची फूफी ने भी,
अनशन बाग लगाये है।।
अब्बू खां की बकरी गायब
पता नहीं क्यों कहाँ गई।
लंगर खाने और जनाने,
धौंस जमाने वहाँ गई।
समझ रखे हैं नासमझी की,
मद में घात लगाये हैं।।
आंदोलन की नींव बनाने,
चका जाम कर बैठे हैं।
खुले बाग की बगिया में भी,
घात लगाये बैठे हैं।
लोकतंत्र की साख मिटाने,
किनने दाग लगाये हैं।
राम बाण🏹 घर में रोती माई (मात्रा भार 14-12)
शौर्यकाल की गाथा सुन,
आँखें हैं भर आई।
मिला नहीं सिर सैनिक का,
घर में रोती माई।।
दाल पकेगी कैसे अब,
सठ साली हैं रोते।
सोने को पता नहीं है,
आलू उनके पोते।
विरोध करने निकले हैं,
मौसेरे सब भाई।।
मुल्ला काजी क्रोध करें,
देते धर्म सफाई।
तीन तलाक के बाद में,
होती जन सुनवाई।।
चकाजाम कर सड़कों में,
बिरयानी खिलवाई।
योग कराते बाबाजी,
बन बैठे कब योगी।
भ्रष्ट मुक्त हो भारत ये,
ढूँढ रहे हैं रोगी।।
रोगी हटाने के लिये,
देशी है अपनाई।
मजहबियों की खैर नहीं,
सहमे सहमे रहते।
पत्थर फेंके कश्मीरी,
लड़के भटके कहते।
भटकाने को बैठे मुल्ले,
देते हमें दुहाई।।
खुल्लम खुल्ला खुल्लू,
डेंगू रोक रहे थे।
सर्जिकल स्ट्राइक का वे,
सबूत देख रहे थे।
फ्री बिजली फ्री पानी ने,
कर दी खूब सफाई।।
स्याही दाग छुड़ाये तो,
चांटा मिल जाता था।
दिल्ली के विकास का,
घाटा मिल जाता था।
लोकपाल को सहलाने,
आ जाते भजपाई।।
अनशनधारी अनशन करते,
सैर करेंगे मोदी।
बूचड़खाने बंद हुए,
अब्बू लेंगे गोदी।।
राम बाण सह न सको तो,
बाम लगाना प्यारे।
हम चुटीले तंज देते,
करते राम भलाई।।
राम बाण🏹 क्या है राज
क्या है राज?
कर लो राज!
बिन पाया की कुर्सी
बिन तकिये का साज
क्या है राज ?
कर लो राज.!
बना दिए मंत्री
तंबाकू मले संत्री
आवागमन अवरुद्ध
उल्लू के सिर पर ताज
क्या है राज ?
कर लो राज!
इसकी दिशा
उसका निर्देशन
टूटा बटन
खुला काज
क्या है राज ?
कर लो राज !
इसे छिपाये इस भेष से
उसे छुड़ाये उस भेष से
किसे गिराए कब
किस पर गिराये गाज।
क्या है राज. ?
कर लो राज !
गठबंधन के काम करो
अपने मुख में नाम धरो
कहीं करो पूजा,
कहीं पढ़ो नमाज
क्या है राज.?
कर लो राज !
मिलने का पैगाम
टैंडर उनके नाम
आमद के नाम है
नीलामी एक रिवाज
क्या है राज.?
कर लो राज !
पानी की है मार
सब हैं पानीदार
मुआवजा का इंतजार
सब आश्वासन के सरताज
क्या है राज.?
कर लो राज !
बदली उनकी हो गई
किस्मत बदली हो गई
बदले बदले रुप में
बदला बदला अंदाज
क्या है राज.?
कर लो राज !
उनके नेता उनके बोल
कौन कौन खाता पोल खोल
खलती बैठक खुलती पोल
पोल खोलते खुलते राज
क्या है राज.?
कर लो राज !
हंगामा है सदनों में
देश हमारा सदमों में
सहमा सहमा था कल
सहमा सहमा आज
क्या है राज.?
कर लो राज !
संसद में कोहराम
बिना बात संग्राम
ईडी सीबीआई से
विपक्ष को है एतराज
क्या है राज.?
कर लो राज !
कैसे गुजरे दिन
कैसे गुजरे रात
कथा कहानी गढ रहे
अच्छे दिन के राज
क्या है राज.?
कर लो राज !
फ्री बिजली फ्री पानी है
सत्ता उनको पानी है
मुफ्त बांटो दारु
मुफ्त बांटो अनाज
क्या है राज.?
कर लो राज !
कोई जाता जैल में
किसी को मिलती बेल
कोई तीस मार खाँ
कोई तीरंदाज
क्या है राज.?
कर लो राज !
कोई लेता लोन
किसी का लोन माफ
लोन लेकर भाग गया
मूलधन पर ब्याज।
क्या है राज.?
कर लो राज !
पेट्रोल मँहगा हुआ
मँहगी हुई है दाल
कोई धना बो रहा
कोई काट रहा प्याज
क्या है राज.?
कर लो राज !
सर्वाधिकार सुरक्षित @ डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी
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